आधी रात में फुसफुसाने वाली शापित गुड़िया

कहानी शुरू होती है…
साल 1997, राजस्थान के एक छोटे से गाँव नवलपुर में। यहाँ की हवाओं में हमेशा एक अजीब सी सिहरन रहती थी। इस गाँव के बाहर एक पुराना हवेलीनुमा मकान था, जिसे लोग “राणा हवेली” कहते थे। सालों से वीरान, लेकिन कहते हैं कि उस हवेली के अंदर आज भी कोई है… कोई जो मर कर भी ज़िंदा है।
कहानी की मुख्य पात्र है संध्या, एक 21 साल की कॉलेज स्टूडेंट, जो गर्मियों की छुट्टियों में अपने ननिहाल नवलपुर आई थी। उसे गांव की ये काली रातें और वीरान हवेली बहुत आकर्षित करती थीं। लेकिन उसकी नानी हमेशा कहतीं,
“संध्या बेटा, राणा हवेली के पास मत जाना… वहां मौत की परछाइयाँ बसती हैं।”

गुड़िया का रहस्य
एक दिन संध्या अपने दोस्तों के साथ उस हवेली में चली गई, चुनौती के तौर पर। हवेली के अंदर गंदगी, धूल और जाले थे, लेकिन एक चीज़ ने सबका ध्यान खींचा — एक पुरानी, मैली और टूटी-फूटी सी गुड़िया।
गुड़िया की आँखें लाल रंग की थीं, मानो खून से सनी हों। और उसका मुँह ऐसा था जैसे अभी कुछ कहने वाला हो।
संध्या ने मजाक में वो गुड़िया उठा ली और घर ले आई। लेकिन उसी रात, आधी रात के ठीक 12 बजे, जब पूरा घर सो रहा था… संध्या के कमरे से धीरे-धीरे फुसफुसाने की आवाजें आने लगीं।
“संध्या… खेलें क्या…? संध्या… खेलें क्या…?”
संध्या ने जब आँखें खोलीं तो गुड़िया उसके सिरहाने बैठी थी, उसकी लाल आँखें चमक रही थीं। डर के मारे संध्या की चीख निकल गई, लेकिन जब घरवाले आए, तो उन्हें कुछ नहीं दिखा — गुड़िया अपनी जगह पर थी।

भूतिया घटनाओं की शुरुआत
इसके बाद रोज़ रात को वही आवाज़ें आने लगीं। धीरे-धीरे दिन में भी अजीब घटनाएं होने लगीं —
बर्तन अपने आप गिरने लगे।
दीवारों पर खून के धब्बे दिखने लगे।
और कभी-कभी संध्या को शीशे में अपने पीछे किसी और की परछाईं दिखती।
नानी ने गाँव के तांत्रिक बाबा “घनश्याम बाबा” को बुलाया। बाबा ने गुड़िया को देखते ही काँपते हुए कहा,
“यह कोई आम गुड़िया नहीं है… इसमें राणा हवेली की छोटी बेटी की आत्मा कैद है, जिसे बचपन में ही बेरहमी से मार डाला गया था। उसकी आत्मा अब इस गुड़िया में बसती है और अपनी मौत का बदला ले रही है।”
भयानक सच
बाबा ने खुलासा किया कि 30 साल पहले राणा साहब की बेटी “आरती” को हवेली में ही मार दिया गया था, काले जादू के एक अनुष्ठान के दौरान। उसकी आत्मा अब चैन पाने के लिए हर उस लड़की को निशाना बना रही थी, जो उसकी गुड़िया को छूती।
संध्या अब रोज़-रोज़ कमजोर होती जा रही थी। उसकी आँखें काली पड़ गई थीं, और वो खुद भी रात में वही शब्द बड़बड़ाने लगी थी,
“खेलें क्या…? खेलें क्या…?”

अंतिम युद्ध
घनश्याम बाबा ने तंत्र-मंत्र की मदद से उस गुड़िया को शमशान घाट ले जाने का सुझाव दिया, जहाँ उसकी आत्मा को मुक्त किया जा सकता था।
आधी रात को, संध्या, नानी और बाबा उस गुड़िया को लेकर शमशान पहुँचे। जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान शुरू हुआ, हवाओं में भयानक चीखें गूँजने लगीं। पेड़ हिलने लगे और चारों ओर घना अंधेरा छा गया।
गुड़िया ने अपनी आँखों से खून के आँसू बहाए और संध्या की ओर बढ़ने लगी। बाबा ने आखिरी बार मंत्र पढ़ते हुए गुड़िया को आग में फेंक दिया। आग की लपटों में वो गुड़िया तड़पती रही और साथ ही हवेली से भी एक काली छाया निकल कर जलने लगी।
अगली सुबह संध्या की तबीयत बिल्कुल ठीक थी। उसकी आँखों में चमक लौट आई थी। गाँव में फिर से शांति छा गई थी।
लेकिन… कहानी यहाँ खत्म नहीं होती…

फाइनल ट्विस्ट
कहानी के आखिर में, जब सब नॉर्मल हो चुका था, संध्या अपने कमरे में आई। उसने अलमारी खोली, और वहाँ एक नई चमचमाती गुड़िया रखी थी — बिल्कुल वैसी ही, जैसी उसने हवेली में पाई थी।
और अचानक, कमरे में फिर वही आवाज़ गूँजी…
“संध्या… खेलें क्या…?”
🩸 समाप्त
(लेकिन क्या ये वाकई समाप्त है? या फिर ये श्राप कभी खत्म ही नहीं होगा…)
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क्या सच में शापित गुड़िया होती हैं?
इतिहास में कई कहानियाँ हैं जहां गुड़िया को आत्माओं का माध्यम माना गया है। हालांकि, यह केवल मान्यताओं पर आधारित है।
राणा हवेली जैसी भूतिया जगहें क्या भारत में मौजूद हैं?
हाँ, भारत में कई ऐसी जगहें हैं जैसे भानगढ़ किला, शनि शिंगणापुर, और पुरानी हवेलियाँ जिनके साथ डरावनी कहानियाँ जुड़ी हैं।
क्या डरावनी कहानियाँ पढ़ना सुरक्षित है?
हाँ, ये सिर्फ मनोरंजन के लिए होती हैं। लेकिन कमजोर दिल वालों को देर रात पढ़ने से बचना चाहिए!